हौजा़ न्यूज एजेंसी!
लेखक सैय्यद मोहम्मद ज़मान बाक़रि
सभी प्रशंसा उस अल्लाह की है, जिसके कब्जे में हर जीवित प्राणी की आत्मा है, जिन्होंने इस धरती पर रहने वाले अरबों खरबों मनुष्यो के बीच उनके हिदायत और मार्गदर्शन के लिए अपने विशेष हादीयो और इमामो को चुन कर लोगों के बीच अपनी निष्पक्षता और न्याय को बाकी रखने के लिए अपनी सिफात का मजहर अली (अ.स.) जैसे इमाम को चुनकर प्रलय (क़यामत) के दिन तक आने वाली मानवता के लिए एक उदाहरण निर्धारित किया। इस व्यक्ति के न्याय की स्थिति का क्या वर्णन किया जाए है जिसकी शुद्धता और शुद्धिकरण पर आयत-ए तत्हीर साक्षी है।
हज़रत का सिद्धांत था कि राजकोष में जो धन आता था, उसे तुरंत ही सही मालिकों (हक़दार) के अनुसार वितरित कर देते थे और वे स्वयं इसे नहीं लेते थे। वितरण के बाद, वे कोषागार में झाड़ू लगवाते थे और फिर वहाँ नमाज पढ़ते थे, ताकि पुनरुत्थान (रोज़े कयामत) वह धरती इस बात की गवाही दे कि अली (अ.स.) ने खुदा की संपत्ति को हक़दारो तक पहुँचाने में कोई सुस्ती नहीं की। अहमद ने अबू अल-बख्तारी से कहा कि हज़रत उमर के दौराने खिलाफत कुछ धन उनके पास आया और वितरण के बाद बच गया। हज़रत उमर ने अपने साथियों (सहाबीयो) से पूछा कि अब इस धन के साथ क्या किया जाना चाहिए? सभी ने कहा, "हमने आपको ख़लीफ़ा बनाकर अपने बच्चों को जीविका हासिल करने से रोका है, अतः यह धन आपका है इसे खर्च करें।"
हज़रत अमीरु-मोमेनीन अली (अ.स.) भी वहाँ मौजूद थे। हज़रत उमर ने कहा: या अली (अ.स.) बाइए कि मैं इस दौलत का क्या करूँ? उन्होंने कहा कि आपके दोस्तों ने तो पहले ही बता दिया। हज़रत उमर ने कहा नही आप अपनी राय पेश कीजिए। मैं आपके आदेश का पालन करूंगा। अली (अ.स.) ने फरमाया: रसूलूल्लाह (स.अ.व.व.) कभी भी दौलत बचा कर नही रखते थे, जो कुछ आता था उसे बांट देते थे और जब सब बट जाता था तो वह खुश होते थे। हजरत उमर ने कहा: आप सच कह रहे हैं मै दुनिया और आखिरत मे आपका आभारी हूं। "वसीलतुन्निजात पेज 137"
यह दिव्य न्याय का एक स्पष्ट प्रमाण है कि उनका चुना हुआ मार्गदर्शक भी न्यायपूर्ण और निष्पक्ष हुआ करते थे। जो लोगों के बीच धन का वितरण करने मे इतना सावधान हो और उसका हक उस तक पहुंचाता हो और अंधेरी रातों में अपनी पीठ पर अनाज की बोरिया रख कर गरीबो, मिसकीनो, अनाथो और कैदियो के घरो तक पहुंचाता हो। वह कितनी उच्च विशेषताओ का मालिक होगा। लेकिन हाय दुर्भाग्यपूर्ण समय सन 40 हिजरी की 19 रमजान की सुबह नमाज की पहली रकअत के पहले सजदे में अब्दुल रहमान इब्न मुल्जम मुरादी ने संसार के अनाथो विशेष कर कूफे के अनाथो के अभिभावक के सर पर जहर मे बुझी तलवार से हमला करके ब्रह्मांड मे रहने वाले व्यक्तियो को अनाथ कर दिया।
मसऊदी ने लिखा है कि40 हिजरी की 19 रमजान को इब्न मुल्जम ने अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) के पवित्र सिर पर प्रहार किया, तो लोग आपके चारो ओर एकत्रित हो गए और उम्मे कुलसूम ने "वा अबाताह" कहकर फ़रयाद की। उमर इब्न हमक ने कहा, "कोई घबराने की बात नही है केवल खरोच है।" तो हजरत अली (अ.स.) ने फरमाया मै शीघ्र ही तुम लोगो से अलग होने वाला हूं फिर फरमाया सन 70 हिजरि तक बला है । इस पर उमर इब्न हमक ने पूछा क्या उसके पश्चात आराम है तो हजरत ने कोई उत्तर नही दिया।
यह वर्णन किया जाता है कि जब हज़रत उम्मे कुलसूम रोई, तो हज़रत ने कहा: तुम क्यों रोती हो काश तुम उन चीजो को देखती जो मै देख रहा हूं सातो आसमान के स्वर्गदूत (फरिश्ते) एक पंक्ति में खड़े हैं और अंबिया उनके पीछे खड़े हैं और यह पैगंबर (स.अ.व.व.) खड़े है और मेरा हाथ थाम कर फरमा रहे है, 'ए अली चलो जिन चीज़ो का अल्लाह तआला ने आखिरत मे तुम्हारे प्रबंध कर रखा है वह इस दुनिया की चीज़ों से बेहतर है।
फिर अपने दोस्तों से कहा, "मुझे अपने अहलेबैत से कुछ कहने का मौका दो।" जब कुछ शियाओं को छोड़कर सभी लोग उठ गए, तो उन्होंने अपने अहलेबैत को बुलाया। फिर, हजरत ने अल्लाह की प्रशंसा करने के बाद कहा, "मैं हसन और हुसैन को अपना वसी बनाता हूं। तुम लोग इनके आदेश और आज्ञा का पालन करना।" यह सुनकर अब्दुल्ला उठ खड़े हुए और उन्होंने कहा, "आपने मोहम्मद हनफया को अपना वसी नही बनाया तो हजरत ने फरमाया मै अपने जीवन में देखा है कि। तुम उनके डेरे में मजबूह पड़े हो। ”
तत्पश्चात इमाम अली (अ.स.) ने इमाम हसन (अ.स.) को अपना वसी बनाया और उन्हें असमा-ए आज़म, नूर, हिकमत और पैगम्बरों की विरासत सौंपी और कहा:जब मेरा इंतेक़ाल (निधन) हो जाए तो मुझे गुस्ल देना, कफन पहनाना और हुनूत करना (काफूर लगाना) फिर कब्र मे उतारना जब कब्र समतल कर चुकना तो एक ईंट हटा कर देखना तो मुझको नही पाओगें।
शबे जुमा (गुरूवार रात्रि) 21 रमजान को आपकी शहादत हुई। उस समय आपकी आयु 65 वर्ष थी और एक रिवायत है कि 63 वर्ष थी 35 वर्ष पैगंबर (स.अ.व.व.) के साथ रहे और तीस साल पैगंबर के बाद रहे।
यह वर्णन किया जाता है कि जरबत (तलवार के प्रहार) के बाद, जब लोग हजरत अली (अ.स.) को उनके घर ले गए और इकट्ठा हुए, तो आपने एक उपदेश(खुतबा) दिया और अल्लाह की हम्दो सना के बाद फरमाया: प्रत्येक व्यक्ति एक दिन मृत्यु से मिलने वाला है, जिससे वह भाग रहा है। नफ्स मौत की ओर खींचा जा रहा है। मृत्यु से भागना मृत्यु की ओर जाना है कितना समय इस रहस्य की खोज मे बीत गया लेकिन अल्लाह ने इसे छिपा कर रखा है। इसकी सच्चाई तक पहुँचना बहुत मुश्किल है। लेकिन मेरी तुम लोगो को वसीयत है कि अल्लाह का किसी को शरीक न बनाना और पैगंबर की सुन्नत को बर्बाद न करना इन दोनो स्तंभों को बनाए रखें।
उन्होंने कहा, "पुनरुत्थान के दिन तक तुम पर सलाम हो।" कल मैं तुम्हारा साथी था और आज मैं तुम्हारे लिए एक सबक हूं। और कल मैं अलग हो जाऊंगा। अगर मैं जीवित रहा, तो मैं अपने खून का बदला लूंगा। और अगर मौत आती है, तो मेरी वादागाह क़यामत है। क्षमा तकवे से अधिक निकट है क्षमा करो अल्लाह तुम लोगो को क्षमा करेगा। क्या तुम लोग पसंद नही करते कि अल्लाह तुमको क्षमा करे खुदा बहुत क्षमा करने वाला और दयालू है।
इमाम अली (अ.स.) ने इमाम हसन (अ.स.) से फ़रमाया कि तुम और हुसैन (अ.स.) मेरी लाश को सर की ओर से उठाना और मेरा जनाजा जहा खुद रुक जाए वही दफनाना। तुम मेरी कब्र खुदी हुई पाओगे जो हज़रत नूह (अ.स.) ने मेरे लिए खोदी थी।
हज़रत के शव को पहले मस्जिदे सहला ले जाया गया। वहाँ एक नाक़ा (ऊंट) बैठा था। शव उस पर रखा गया। वह चला और चलते हुए ग़री (नजफ़) में अपने आप बैठ गया। इस जगह की कुछ मिट्टी हटा गई तो कब्र खुदी हुई मिली। वसीयत के अनुसार, हज़रत के शव को कब्र में दफनाया गया हजरत का जनाजा रात मे उठाया गया और रात में दफनाया गया और हज़रत इमाम हसन (अ.स.) और हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ने इसे किसी और के साथ साझा नहीं किया था।
नहरवान की जंग के बाद 3 खारजियो अब्दुल रहमान इब्न मुलजम मुरादी, बराक बिन अब्दुल्लाह और उमर इब्न बक्र तमीमी ने राय की, कि अमीरुल मोमेनीन अली (अ.स.), मुआविया और उमर इब्न आस को मार दिया जाना चाहिए। इब्न मुल्जम ने आमिरुल मोमेनीन की हत्या की जिम्मेदारी ली और कुफा रवाना हो गया, बिर्क दमिश्क और मिस्र के लिए उमर इब्न बक्र। मुआविया और 'उमर इब्न आस ' तो बच गए, लेकिन इब्न मुल्जम मलऊन कुफ़ा पहुँच कर 19 वी रमज़ान की प्रतीक्षा मे छुप गया।
जब रमज़ान के उन्नीसवें की सुबह की नमाज़ के लिए आमिरुल-मोमेनीन (अ.स.) ने मस्जिद जाने का इरादा किया, तो घर में पली हुई बत्तखें चीखने लगीं और हज़रत (अ.स.) का दमन पकड़ने लगी। अहलेबैत ने जितना भी उनका छुड़ाना चाहा तो हजरत ने कहा इन्हे छोड़ दो ये अपने मालिक पर रो रही है। जब हजरत ने नमाज पढ़ना शुरू किया तो सजदे की हालत मे अब्दुल रहमान इब्न मुल्जम मुरादी ने हजरत के सर पर तलवार से प्रहार किया। हज़रत ने कहा, "फ़ुज़तो बेरब्बिल काबा।" उसके बाद लोग हजरत को उठा कर घर लाए और 21 रमज़ान सन 40 हिजरि जुमे के दिन हजरत ने शहादत फरमाई। (तिबरी और वसीलतुन्निजात के लेखो का खुलासा)
अमीरुल मोमेनीन की शहादत की तारीख, जरबत और दफन होने के स्थान मे इतिहासकारों में कुछ असहमति है, लेकिन यह सच है कि रमजान के उन्नीसवें की सुबह, अब्दुल रहमान इब्ने मुल्जम मुरादी ने आपके पवित्र सिर पर जहर मे बुझी तलवार से नमाज की पहली रकअत के पहले सजदे मे प्रहार किया और 21 रमजान शुक्रवार को शहादत हो गई। और ग़रि (नजफ अशरफ) मे दफन किए गए जो आज इराक की धरती पर वह स्थान सभी अहलेबैत के चाहने वालो और अमीरुल मोमेनीन के चाहने वालो के लिए शिफा और दुआ के कबूल होने का केंद्र है। आज भी लाखो करोड़ो हैदरे करार के प्रेमी इस पवित्र स्थान की जियारत करते है और शिफा पाते है।
मुल्ला मुबीन साहब फरंगी महल्ली वसीला तुन्निजात के पृष्ठ 191 मे लिखते है कि यह सच है कि हजरत अली मुर्तजा सलामुल्लाह अली नबीयेना का हरम नजफ अशरफ में है, जहां आज एक विद्वान को आपकी जियारत का शरफ मिलता है और जो जरूरतमंदों का मलजा और मावा है और सभी दुआ के कबूल होने का स्थान है।
आप हजरत अमीरूल मोमेनीन शियाओं के बिला फस्ल पहले ख़लीफ़ा और जानशीने रसूल है। और अहले सुन्नत वल जमात के चौथे ख़लीफ़ा है- वा ग़ुरबता, वा अलीया, अल्लाहुम्मा अलअन कतालता अमीरल मोमेनीन
मिम्बरऑफ ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड लखनऊ
इमामे जमात शिया मस्जिद इमामबाड़ा किला, रामपुर
सैयद मोहम्मद ज़मान बक़री